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Bangal  Mein Bhajpa/बंगाल में भाजपा

Bangal Mein Bhajpa/बंगाल में भाजपा

Vaam Gadh Mein Dakshinpanth Ki Vikas Yatra/वाम गढ़ में दक्षिणपंथ की विकास यात्रा

Manjit Thakur/मंजीत ठाकुर
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Paperback / Hardback

2024 के चुनावी साल की शुरुआत अयोध्या के राममंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा से हुई और गली-कूचों में लहराते रामनामी भगवा झंडों ने एक तरह से चुनावी हवा के रुख का संकेत देना शुरू कर दिया। दशक भर से केंद्रीय सत्ता में आसीन भाजपा उन इलाकों में जनाधार को विस्तृत करना चाह रही है जहाँ उसके विस्तार की संभावनाएँ हैं। ऐसा ही सूबा है पश्चिम बंगाल, जहाँ भाजपा के करिश्माई सेनापति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रचंड चुनावी लहर का मजबूती से सामना करने वाली तृणमूल नेता ममता बनर्जी मुख्यमंत्री हैं।
आजादी के बाद से पहले जनसंघ और फिर भाजपा ने बंगाल पर कब्जे की हर संभव कोशिश की है। कभी वामपंथ के गढ़ के रूप में परिभाषित बंगाल में 2016 के बाद से परिदृश्य बदलता गया है। अब भाजपा के लिए पूर्व का यह सूबा बेहद अहम बन गया है। 2006 के विधानसभा चुनावों में वाम मोर्चे के ज़बरदस्त प्रदर्शन के बाद आहिस्ता-आहिस्ता उसका जनाधार छीजता चला गया। ममता ने भी 2021 के विधानसभा चुनावों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है, तो क्या अब राज्य की राजनीति में केंद्रीय भूमिका में आने की बारी भाजपा की है?
भाजपा के पास ‘राष्ट्रवाद’ और ‘रामलला’ हैं, जो रील्स के इस दौर में बंगाल में भी कारगर हो गए हैं, लेकिन ममता के पास पहले की तरह बंगला अस्मिता और सांस्कृतिक उपाख्यानों का सहारा है। राष्ट्रवाद और उप-राष्ट्रवाद के बीच का द्वंद्व बंगाल के चुनावी युद्ध को और अधिक दिलचस्प बना रहा है।
यह पुस्तक बंगाल में भाजपा (और संघ परिवार) की यात्रा को विस्तार से बताने के साथ आजादी के बाद अब तक बंगाल की राजनीतिक कथा भी सुनाती है।   

Imprint: Penguin Swadesh

Published: Apr/2024

ISBN: 9780143466901

Length : 248 Pages

MRP : ₹299.00

Bangal Mein Bhajpa/बंगाल में भाजपा

Vaam Gadh Mein Dakshinpanth Ki Vikas Yatra/वाम गढ़ में दक्षिणपंथ की विकास यात्रा

Manjit Thakur/मंजीत ठाकुर

2024 के चुनावी साल की शुरुआत अयोध्या के राममंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा से हुई और गली-कूचों में लहराते रामनामी भगवा झंडों ने एक तरह से चुनावी हवा के रुख का संकेत देना शुरू कर दिया। दशक भर से केंद्रीय सत्ता में आसीन भाजपा उन इलाकों में जनाधार को विस्तृत करना चाह रही है जहाँ उसके विस्तार की संभावनाएँ हैं। ऐसा ही सूबा है पश्चिम बंगाल, जहाँ भाजपा के करिश्माई सेनापति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रचंड चुनावी लहर का मजबूती से सामना करने वाली तृणमूल नेता ममता बनर्जी मुख्यमंत्री हैं।
आजादी के बाद से पहले जनसंघ और फिर भाजपा ने बंगाल पर कब्जे की हर संभव कोशिश की है। कभी वामपंथ के गढ़ के रूप में परिभाषित बंगाल में 2016 के बाद से परिदृश्य बदलता गया है। अब भाजपा के लिए पूर्व का यह सूबा बेहद अहम बन गया है। 2006 के विधानसभा चुनावों में वाम मोर्चे के ज़बरदस्त प्रदर्शन के बाद आहिस्ता-आहिस्ता उसका जनाधार छीजता चला गया। ममता ने भी 2021 के विधानसभा चुनावों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है, तो क्या अब राज्य की राजनीति में केंद्रीय भूमिका में आने की बारी भाजपा की है?
भाजपा के पास ‘राष्ट्रवाद’ और ‘रामलला’ हैं, जो रील्स के इस दौर में बंगाल में भी कारगर हो गए हैं, लेकिन ममता के पास पहले की तरह बंगला अस्मिता और सांस्कृतिक उपाख्यानों का सहारा है। राष्ट्रवाद और उप-राष्ट्रवाद के बीच का द्वंद्व बंगाल के चुनावी युद्ध को और अधिक दिलचस्प बना रहा है।
यह पुस्तक बंगाल में भाजपा (और संघ परिवार) की यात्रा को विस्तार से बताने के साथ आजादी के बाद अब तक बंगाल की राजनीतिक कथा भी सुनाती है।   

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Manjit Thakur/मंजीत ठाकुर

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