
यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि यदि बंगला साहित्य में से शरत् को हटा दिया जाए, तो उसके पास जो कुछ शेष रहेगा वह न रहने के बराबर ही होगा। शरत् ने बंगला साहित्य को समृद्ध ही नहीं किया है अपितु उसे परिमार्जित भी किया है। धर्म के नाम पर समाज के ठेकेदार, आम आदमी पर किस तरह हावी होते हैं यह सर्वविदित है? उन्हें अपने चंगुल में फँसाने के लिए इन ठेकेदारों ने क्या—क्या प्रपंच नहीं किए? ‘चंद्रनाथ’ ऐसा उपन्यास है, जिसका नायक परंपरागत सामाजिक बंधनों और संकीर्ण मानसिकताओं का शिकार है, अंततः क्या वे रूढ़िवादी सामाजिक बंधनो को तोड़ सके या समाज की बुराइयो से लड़ सके? भारतीय साहित्यकार शरतचन्द्र के अनूठे उपन्यास का सरल हिंदी अनुवाद, जो सभी वर्ग के पाठकों के लिए रोचक, सरल एवं सुबोध एवं संग्रहणीय है।
Imprint: Penguin Swadesh
Published: Aug/2025
ISBN: 9780143478034
Length : 112 Pages
MRP : ₹199.00