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Sabrang Mohbhang/सबरंग मोहभंग

Sabrang Mohbhang/सबरंग मोहभंग

Dr. Lakshminarayan Lal/डॉ. लक्ष्मीनारायाण लाल
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Paperback / Hardback

“तोड़ दो अपने घेरे को! रुककर देखो, कौन दौड़ा जा रहा है? बीच में कौन है? इस खेल का अंत कहाँ है? अपने-आपसे प्रश्न करो—जाना कहाँ है? ऐसा क्यों है? यह हो क्या रहा है? हमसे कराया क्यों जा रहा है? हे माँ! हमें शिव का मस्तिष्क दो, कृष्ण का हृदय दो, राम का कर्म दो, गांधी का सत्य दो!”
अपनी ही संस्कृति को जीर्ण पुरातन कहकर त्याग फेंकने वाले भारतीयों का पश्चिम के प्रति हो रहे मोह को भंग करने वाला अत्यंत विचारोत्तेजक तथा मनोरंजक नाटक दिया गया है इस पुस्तक में।
आज के नाटककारों की अगली पंक्ति के बहुचर्चित नाटककार लक्ष्मीनारायण लाल की यह नाट्यकृति कई पुरस्कारों से सम्मानित की जा चुकी है।
यह आधुनिक हिंदी साहित्य का प्रथम संपूर्ण लीला नाटक है, जिसका सफल मंचन नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा द्वारा राजधानी में किया गया। उस मंचन के चित्रों सहित प्रस्तुत है यह नाट्य-साहित्य तथा हिंदी-रंगमंच का गौरवशाली ग्रंथ।

Imprint: Penguin Swadesh

Published: Jul/2025

ISBN: 9780143477150

Length : 88 Pages

MRP : ₹199.00

Sabrang Mohbhang/सबरंग मोहभंग

Dr. Lakshminarayan Lal/डॉ. लक्ष्मीनारायाण लाल

“तोड़ दो अपने घेरे को! रुककर देखो, कौन दौड़ा जा रहा है? बीच में कौन है? इस खेल का अंत कहाँ है? अपने-आपसे प्रश्न करो—जाना कहाँ है? ऐसा क्यों है? यह हो क्या रहा है? हमसे कराया क्यों जा रहा है? हे माँ! हमें शिव का मस्तिष्क दो, कृष्ण का हृदय दो, राम का कर्म दो, गांधी का सत्य दो!”
अपनी ही संस्कृति को जीर्ण पुरातन कहकर त्याग फेंकने वाले भारतीयों का पश्चिम के प्रति हो रहे मोह को भंग करने वाला अत्यंत विचारोत्तेजक तथा मनोरंजक नाटक दिया गया है इस पुस्तक में।
आज के नाटककारों की अगली पंक्ति के बहुचर्चित नाटककार लक्ष्मीनारायण लाल की यह नाट्यकृति कई पुरस्कारों से सम्मानित की जा चुकी है।
यह आधुनिक हिंदी साहित्य का प्रथम संपूर्ण लीला नाटक है, जिसका सफल मंचन नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा द्वारा राजधानी में किया गया। उस मंचन के चित्रों सहित प्रस्तुत है यह नाट्य-साहित्य तथा हिंदी-रंगमंच का गौरवशाली ग्रंथ।

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Dr. Lakshminarayan Lal/डॉ. लक्ष्मीनारायाण लाल

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