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Vasant Sundari / वसंत-सुंदरी

Vasant Sundari / वसंत-सुंदरी

Badri Prasad Rastogi / बद्री प्रसाद रस्तोगी
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Paperback / Hardback

“सरस्वती मैंने तुम्हारा सौंदर्य देखा है। एक ऐसा सौंदर्य, जो केवल शरीर का ही नहीं, हृदय का था, ज्ञान का था। क्या कभी पहले इस पृथ्वी पर ऐसे सौंदर्य ने जन्म लिया था?”
यह थी वसंत-सुंदरी सरस्वती, जिसका सौंदर्य सचमुच मेनका जैसी अप्सरा के रूप-लावण्य को भी मात करता था, लेकिन वह बहुत बड़ी विदुषी भी थी।
एक थे राजा इंद्रदेव, जो हर साल एक अभूतपूर्व सुंदरी का चयन करते थे, उसे एक वर्ष अपनी संगिनी बनाकर उससे एक पुत्र की प्राप्ति करते और फिर उसका किसी राजकर्मी से विवाह करा देते थे। यह विकृत और घृणा करने योग्य प्रथा थी, पर जो भी राजाज्ञा का उल्लंघन करता, उसके परिवार को मृत्यु-दंड भोगना पड़ता। सरस्वती ने प्रण किया कि वह सबको बचाने के लिए और राजा को उद्दंडतापूर्ण कार्यों से रोकने के लिए अपने आपको समर्पित कर देगी।
उसने ऐसा ही किया अंत में राजमहल का सुख त्याग कर भिक्षुणी बन गई। फिर एक दिन ऐसा आया कि ‘संघ’ के भिक्षु वासुमित्रा के साथ संन्यास त्याग गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कर लिया और एक पुत्र को जन्म दिया।
. . .और एक दिन फिर अपने धर्म, दर्शन और संस्कृति के बीज घर-घर में रोपने के लिए निकल पड़ी श्वेत वस्त्र धारण करके।

Imprint: Penguin Swadesh

Published: Aug/2025

ISBN: 9780143477976

Length : 188 Pages

MRP : ₹250.00

Vasant Sundari / वसंत-सुंदरी

Badri Prasad Rastogi / बद्री प्रसाद रस्तोगी

“सरस्वती मैंने तुम्हारा सौंदर्य देखा है। एक ऐसा सौंदर्य, जो केवल शरीर का ही नहीं, हृदय का था, ज्ञान का था। क्या कभी पहले इस पृथ्वी पर ऐसे सौंदर्य ने जन्म लिया था?”
यह थी वसंत-सुंदरी सरस्वती, जिसका सौंदर्य सचमुच मेनका जैसी अप्सरा के रूप-लावण्य को भी मात करता था, लेकिन वह बहुत बड़ी विदुषी भी थी।
एक थे राजा इंद्रदेव, जो हर साल एक अभूतपूर्व सुंदरी का चयन करते थे, उसे एक वर्ष अपनी संगिनी बनाकर उससे एक पुत्र की प्राप्ति करते और फिर उसका किसी राजकर्मी से विवाह करा देते थे। यह विकृत और घृणा करने योग्य प्रथा थी, पर जो भी राजाज्ञा का उल्लंघन करता, उसके परिवार को मृत्यु-दंड भोगना पड़ता। सरस्वती ने प्रण किया कि वह सबको बचाने के लिए और राजा को उद्दंडतापूर्ण कार्यों से रोकने के लिए अपने आपको समर्पित कर देगी।
उसने ऐसा ही किया अंत में राजमहल का सुख त्याग कर भिक्षुणी बन गई। फिर एक दिन ऐसा आया कि ‘संघ’ के भिक्षु वासुमित्रा के साथ संन्यास त्याग गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कर लिया और एक पुत्र को जन्म दिया।
. . .और एक दिन फिर अपने धर्म, दर्शन और संस्कृति के बीज घर-घर में रोपने के लिए निकल पड़ी श्वेत वस्त्र धारण करके।

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Badri Prasad Rastogi / बद्री प्रसाद रस्तोगी

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