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Poornahuti/पुर्णाहुति

पिता की सेना में पति को घिरे देख युद्धक्षेत्र में लज्जा त्याग संयोगिता बोली, ‘स्वामी! अब मेरा मुँह न देखिए बढ़-बढ़कर हाथ दीजिए और क्षत्रिय-जन्म सुफल कीजिए!’
वीर क्षत्राणी संयोगिता, कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी थीं। संयोगिता को तिलोत्तमा, कान्तिमती, संजुक्ता जैसे नामों से भी जाना जाता है। संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान के बीच प्रेम की कहानी बहुत प्रसिद्ध है, जिसे इस उपन्यास में दर्शाया गया है।
क्षत्रिय-कुल सिरमौर पृथ्वीराज चौहान की बहादुरी की रूह फूंक देने वाली इस कहानी में आचार्य चतुरसेन ने शृंगार और वीर रसों का अद्भुत संगम कराते हुए इसे अमर ऐतिहासिक उपन्यास बना दिया है।

Lal Mirch/लाल मिर्च

कुछ लड़कियाँ भी तो लाल मिर्च जैसी होती हैं! उसे भी लाल मिर्च जैसी लड़कियाँ पसंद थीं।
उसने अपने जीवन के कई अमूल्य वर्ष लाल मिर्च जैसी लड़की की खोज में बिता दिया—पर उसे वह न मिली। और जब वह उसे मिली तो ऐसा अनुभव हुआ मानो उसकी आँखों में किसी ने लाल मिर्च पीसकर झोंक दी हो। यह है लाल मिर्च की कहानी।

Lata/लता

लता गुजराती के आठ प्रसिद्ध लेखकों का सम्मिलित रूप से लिखा एक उपन्यास है। ये सभी लेखक जाने-माने और अपनी-अपनी शैली के माहिर हैं। लता में दो पुरुषों के स्नेह-सूत्रों में बंधी एक नारी की कहानी है—बहुत करुण, बहुत मार्मिक!
इस कथा को आठ कोणों से आठ लेखकों ने, आठ मनस्थितियों से लिखा है। यह अद्भुत प्रयोग निश्चय ही पाठकों को बहुत पसंद आएगा। मूल रूप से यह उपन्यास गुजराती में लिखा गया था। हिंदी में इसके अनुवादक हैं श्री परदेसी। अनुवादक ने इसे इस प्रकार अनुवादित किया है कि यह उपन्यास भाषा की दृष्टि से हिंदी में लिखा गया ही प्रतीत होता है।

Muktidhan Tatha Anya Kahaniyan/मुक्तिधन तथा अन्य कहानियाँ

विश्व के महान कथा-शिल्पी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी मुक्तिधन ‘गौ’ से जुड़ी हुई है। लाला दाऊदयाल ने एक ज़रूरतमंद मुसलमान से एक गाय खरीदी, लेकिन विधि का विधान ही ऐसा निकला कि उस मुसलमान सज्जन को बार-बार रुपयों की ज़रूरत पड़ी तो, उसने सूद पर लाला दाऊदयाल से ही हर बार पैसे लिए, लेकिन कभी चुका न पाया, लेकिन अंत में दाऊदयाल ने उस मुस्लिम सज्जन का कर्ज यह कहकर माफ कर दिया कि ‘मैं ही तुम्हारा कर्जदार हूँ, क्योंकि तुम्हारी गाय मेरे पास है और गाय ने कर्ज के धन से अधिक दूध दिया है और बछड़े नफ़े में अलग।’ यह कथा मज़बूरी का फ़ायदा न उठाने की प्रेरणा देती है।
इसी के साथ इसमें प्रेमचंद की अन्य श्रेष्ठ कहानियाँ भी दी गई हैं, जो प्रेरक भी हैं और रोचक भी।
कथा सम्राट के गौरव से विभूषित संसार के अग्रणी कथाकारों में प्रतिष्ठित प्रेमचंद की कहानियों का यह खंड संपूर्ण रूप से मूल पाठ है।

Patakshep/पटाक्षेप

हिंदी पाठकों की सुपरिचित लेखिका मालती जोशी मध्यवर्गीय परिवार से हैं। अपने घर-आंगन से, पास-पड़ोस से कथाबीज उठाकर वे कल्पना का रंग देती हैं। इसीलिए उनकी रचनाएँ परिवार के इर्द-गिर्द घूमती हैं। उनकी रचनाओं को पढ़कर हरेक घटना अपने आसपास ही घटी हुई प्रतीत होती है।
पटाक्षेप चिंताओं और जीवन की सचाइयों से संबंधित सशक्त साहित्यिक कृति तो है ही, साथ ही अत्यंत रोचक भी है। यह रचना समाज की सच्चाई को एक दर्पण की तरह दिखाने में पूरी तरह सक्षम है।

Pighalte Patthar/पिघलते पत्थर

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता अर्थात जिस कुल में स्त्रियों का आदर है वहाँ देवता प्रसन्न रहते हैं। इस प्रकार शास्त्रों में नारी की महिमा बताई गई है। भारतीय समाज में नारी का एक विशिष्ट व गौरवपूर्ण स्थान है। लेकिन आजकल के समाज में ऐसा नहीं है। आजकल कहीं वीरान स्थल पर नारी मिल जाए तो किसी रक्षक को भी भक्षक बनने में देर नहीं लगती। लेकिन चरित्र और मर्यादा के बल पर नारी निसंदेह नारायणी का रूप भी धारण करके भक्षक को रक्षक बनाने में सक्षम हो सकती है।
तीन-तीन नारी-विरोधी पुरुषों को अलग-अलग ढंग से वश में करके सही मार्ग पर लाने वाली एक युवती के साहसपूर्ण कृत्यों की सरस कहानी, जिसे प्रस्तुत किया है लोकप्रिय उपन्यासकार धर्मवीर कपूर ने।

Planetary Meditation/प्लैनेटरी मेडिटेशन

इस पुस्तक में ज्योतिष विज्ञान और ब्रह्मांड की रचना के परस्पर संबंधों का बहुत ही ख़ूबसूरती से उद्घाटन किया गया है। इसमें अत्यंत गहन रूप में देश-काल में व्याप्त चेतना के प्रवाह का वर्णन किया गया है। इससे स्पष्ट होता है लेखक को विषय की कितनी गहरी समझ है– डॉ. मुरली मनोहर जोशी, संसद सदस्य और पूर्व केंद्रीय मंत्री
प्लैनेटरी मैडिटेशन में बहुत ही सरल ढंग से समझाया गया है कि ग्रहों की स्थितियाँ किस तरह से हमारे जीवन को स्वरूप प्रदान करती हैं और हमें ज्ञान, शांति और विवेक से समृद्ध करती हैं। इसमें नक्षत्र-मैडिटेशन की एक ऐसी ध्यान-विधि को उद्घाटित किया गया है, जिसकी पहले कल्पना भी नहीं की गई थी। इससे स्पष्ट होता है कि जिस नक्षत्र में व्यक्ति का जन्म होता है, उसके देवता से जुड़कर ही वह सत्, चित् और आनंद की अवस्था को प्राप्त कर सकता है।

Pragati Ke Path Par/प्रगति के पथ पर

प्रगति के पथ पर गुरुदत्त का एक लोकप्रिय सामाजिक उपन्यास है, जिसमें सामाजिक बुराइयों पर कड़ा प्रहार करते हुए देश की एकता का संदेश दिया गया है। ग्रामीण भारत में सदियों से चली आ रही सामाजिक बुराइयों को केंद्र में रखते हुए इस उपन्यास का ताना बाना इस प्रकार बुना गया है कि पाठकों को लगता है कि देश को तोड़ने की नहीं जोड़ने की जरूरत है, इसलिए अंतर्जातीय विवाह को प्रोत्साहन देकर जाति प्रथा का समूल विनाश कर देना चाहिए।
समाज में राजनीतिक से लेकर आर्थिक तक के कई मुद्दों को पड़ताल करने वाला यह एक काल्पनिक उपन्यास है। लिंग, जाति, या वर्ग पूर्वाग्रह जैसी सामाजिक समस्याओं को पात्रों पर पड़ने वाले प्रभाव के ज़रिए इसमें इस प्रकार रेखांकित किया गया है पाठक एक बार पढ़ना शुरू करे तो वह इसे पूरा पढ़कर ही दम लेगा।

Prema/प्रेमा

• विश्व के महान कथा-शिल्पी प्रेमचंद का प्रारंभिक उपन्यास है—प्रेमा। विधवा जीवन की ज्वलंत समस्या को सशक्त ढंग से उठाने में सक्षम यह कथा विधवा विवाह की पक्षधर है।
• इसमें नायक सहसा ही समाज सुधार का बीड़ा उठाकर प्रेमा के साथ विवाह करने का वचन भंग कर देता है, जिससे विरोध की विचित्र स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
• यहाँ भी प्रेमचंद का तीखा विरोध उन शक्तियों के प्रति है, जो धर्म के नाम पर पाखंडों में डूबी हैं।
• इसी के साथ प्रेमा का पूर्व उर्दू-रूप ‘हमखुर्मा व हमसवाब’ भी दिया गया है। यहाँ इसे प्रस्तुत करने का वास्तविक कारण यह है कि प्रेमचंद साहित्य के अध्येता दोनों रूपों का अध्ययन कर प्रेमचंद की कथाधर्मिता को समझ-परख सकें।
• उपन्यास सम्राट के गौरव से विभूषित संसार के अग्रणी कथाकारों में प्रतिष्ठित प्रेमचंद की ये कृतियां सम्पूर्ण रूप में प्रामाणिक मूल पाठ हैं।

Pushpgandha/पुष्पगंधा

मन और देह-दोनों अलग-अलग कैसे बातें कर पाते हैं . . .’ क्या आपने सोचा है कभी? एक यह शोभना है, प्यासी अतृप्त और सपनीली।. . . और एक है यह उदयन, एक है उमाकान्त; एक है श्रीमोहन और एक है कामेश्वर राय। लेकिन नहीं, यह प्यासी शोभना तो एक तट चाहती थी—तट पर खड़ी पुष्प बिखराते-बिखराते स्वयं बिखर जाने वाली पुष्पगंधा तो वह नहीं थी. . .
एक ऐसे अद्भुत नारी-मन की अन्तरंग कथा है पुष्पगंधा, जिसकी सुगन्ध आपको मोह लेगी . . .सुप्रसिद्ध उपन्यासकार भगवतीप्रसाद वाजपेयी का यह एक सशक्त उपन्यास है!

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