कब तक पुकारूँ रांगेय राघव द्वारा लिखा गया एक अद्भुत पठनीय उपन्यास है। जिसमें राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सीमा से जुड़ा ‘बैर’ एक ग्रामीण क्षेत्र की कहानी कहता है। वहाँ नटों की भी बस्ती है। तत्कालीन जरायम पेशा करनटों की संस्कृति पर आधारित यह एक सफल आँचलिक उपन्यास है।
इस उपन्यास का नायक सुखराम करनट अवैध संबंध पैदा हुआ एक ऐसा व्यक्ति है जिसके लिए सिद्धांतों पर चलना टेढ़ी खीर है। इस उपन्यास की पात्राएँ अवैध संबंधों से पीड़ित लड़कियाँ इतनी मासूम हैं कि नैतिकता क्या है, इसका ज्ञान उन्हें नहीं है। थोड़े से पैसों की खातिर वे कहीं भी चलने को तैयार हो जाती हैं।
Catagory: Literature & Fiction
Kamal Kumar Ki Yadgri Kahaniyan/कमल कुमार की यादगारी कहानियाँ
कमल कुमार ने अपनी कहानियों में चतुर्दिक बिखरे क्रूर यथार्थ, विडंबनाओं और विसंगतियों के बीच उम्मीद की लौ को भी प्रदीप्त रखा है। आज की अपसंस्कृति और अवमूल्यन के अंधेरे में मानवीय मूल्यों के प्रति विश्वास और संबद्धता की सार्थक अभिव्यक्ति की है। प्रेम, आत्मीयता, अपनत्व और मानवीय बोध को ये कहानियाँ उजागर करती हैं। ये कहानियाँ पात्रों के बहुआयामी और जटिल पक्षों को उभारती हुई उनके गहरे द्वंद्वों, तनावों, संवेदनाओं और जटिल अंतर्संबंधों को जीवंतता के साथ उद्घाटिता करती हैं। कमल के पास बहुत की समर्थ भाषा है। संकेतों, प्रतीकों, और बिंबों में कहने की कलात्मक शैली इस भाषा का विशेष आकर्षण है।
Karbala/कर्बला
कर्बला एक ऐतिहासिक-धार्मिक नाटक है जो 1924 में लिखा गया था। भारत के तेज होते स्वतंत्रता संग्राम में मुंशी प्रेमचंद भारतीय समाज में हिंदू और मुस्लिम वैमनस्य से बेहद चिंतित थे। धर्मिक सामंजस्य स्थापित करने के लिए उन्होंने कर्बला नाटक की रचना की।
इस नाटक और घटना की मूल संवेदना यह है कि मुस्लिम धर्म में भी त्याग, समर्पण और शहादत की भावना को बताना था। इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव व रोमांचक विवरण लिए हुए यह एक ऐतिहासिक नाटक है। इस मार्मिक नाटक में यह दिखाया गया है कि उस काल के मुस्लिम शासकों ने किस प्रकार मानवता प्रेमी, असहायों व निर्बलों की सहायता करने वाले हुसैन को परेशान किया और अमानवीय यातनाएं दे देकर उसका कत्ल कर दिया।
Kashinath/काशीनाथ
काशीनाथ शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय की एक रोचन रचना है। यह एक गरीब लड़के और एक धनी ज़मींदार की लड़की के विवाह के बाद होने वाले टकराव की कहानी है। शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय ने अपने बचपन में ही लिखना शुरू कर दिया था और कोरेल और काशीनाथ जैसी दो कहानियाँ उन्होंने उसी समय लिखी थीं। परंतु काशीनाथ को पढ़ते हुए ऐसा आभास होता है कि यह बचपन में नहीं वरन परिपक्व अवस्था में लिखी गई रचना है। इसमें गाँव के लोगों की ज़िंदगी, उनके संघर्ष और उनके सामने आने वाली मुश्किलों का वर्णन है और साथ ही तत्कालीन बंगाल के सामाजिक जीवन की एक झलक भी मिलती है।
Madhu/मधु
मधु, महान साहित्यकार गुरुदत्त की ऐसी रचना है, जिसे आपातकाल के दौरान प्रतिबंध का दंश झेलना पड़ा था। लेखक को इसके लिए भारी जुर्माना भी भरना पड़ा था और तिहाड़ जेल की सजा काटी वह अलग। लेकिन बाद में कोर्ट में लंबी लड़ाई के बाद इस रचना से प्रतिबंध हटाया गया और अब यह रचना पाठकों के बीच एक बार फिर आ गई है। इस पुस्तक में सामाजिक चेतना की ऐसी प्रेरक एवं संघर्षपूर्ण कहानी है जो हर किसी को चिंतन एवं मंथन करने के लिए विवश कर देती है।
Mahan Hastiyon Ke Hasya Vinod/महान हस्तियों के हास्य-विनोद
विश्व की सैकड़ों महान हस्तियों के शिष्ट हास्य, चुटीली हाजिर-जवाबी से भरपूर यह एक अनूठा संकलन है। यह एक ऐसी पुस्तक है, जो आपका मनोरंजन भी करेगी और सीख भी देगी।
गांधी, नेहरू, टैगोर, तिलक, गोखले, विनोबा भावे, सरदार पटेल, गालिब, सुकरात, टॉल्सटॉय, शेक्सपियर, बर्नार्ड शॉ, नेपोलियन, हिटलर, स्टालिन, अब्राहम लिंकन, चर्चिल, पिकासो, चार्ली चैपलिन, बर्द्रड रसल, मार्क ट्वेन, डार्विन, आइन्सटाइन जैसों के मुख से छलछलाती मीठी-तीखी चुटकियों के दर्शन आपको इस पुस्तक में देखने को मिलेंगे।
Nadi Teere/नदी तीरे
“. . . कभी-कभार पति प्राप्त होता है मुझे और सो भी निचुड़े हुए नीबू की तरह. . .”
“देखो लक्ष्मी!. . . जो जिसके योग्य होता है, उसे वही प्राप्त होता है। निचुड़ा हुआ नीबू कड़वा भी होता है। इसलिए कान खोलकर सुन लो कि अगर तुम अपने-आप मायके नहीं चली जातीं तो मैं तुम्हें धक्के मार-मारकर यहाँ से निकाल दूँगा।”
एक दृढ़ निश्चयी युवती के अनोखे संघर्ष की अद्भुत कहानी। प्रतिष्ठित उपन्यासकार गुरुदत्त का नवीनतम अत्यंत रोचक तथा मर्मभेदी उपन्यास। यह उपन्यास अत्यंत सरल भाषा में लिखा गया है।
Navvidhan/नवविधान
अपनी दूसरी पत्नी की मृत्यु के बाद शैलेश अपनी पहली पत्नी को वापस अपने घर लाना चाहता है, जिसके साथ उसकी शादी अट्ठारह साल की उम्र में हुई थी। जब वह अपनी शिक्षा के लिए विदेश गया, तो उसके पिता ने उसकी पत्नी को उसके मायके वापस भेज दिया।
चूँकि वह भूपेंद्र बाबू की बेटी से शादी करना चाहता था, इसलिए उसके दोस्त उसकी खिंचाई करते थे कि उसे अपनी पहली पत्नी को वापस ले लेना चाहिए। परेशान होकर वह उसे बुलाता है। उषा वापस आती है और अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाती है।
हालाँकि, शैलेश के बेटे सोमेंद्र के पालन-पोषण को लेकर वह शैलेश की छोटी बहन विभा से नाराज़ हो जाती है। विभा के पति क्षेत्रमोहन और ननद दोनों ही उसका समर्थन करते हैं।
उषा के चले जाने के बाद शैलेश साधुओं की संगति में चला जाता है। इससे उसकी बहन परेशान हो जाती है। अंततः उषा पुनः लौटती है और सारा आतंक समाप्त कर देती है।
Oonche Parvat/ऊंचे पर्वत
स्टेनबेक ने अपनी इस पुस्तक में गरीब किसानों और साधारण वर्गों का बड़ी सहृदयता से चित्रण किया है। आँचलिकता स्टेनबेक के इस उपन्यास की दूसरी विशेषता है। विषयवस्तु और शैली की दृष्टि से भी यह अपने समकालीनों से कहीं सशक्त रचना है। स्टेनबेक को जनसाधारण की क्षमता में बेहद विश्वास है, जो इस पुस्तक को पढ़ने से पता चलता है।
‘ऊँचे पर्वत’ (दी रेड पोनी) में कैलिफोर्निया के पर्वतीय प्रदेश के किसानों के जीवन, उनकी आकांक्षाओं और उमंगों का शक्तिशाली चित्रण किया गया है। अमेरिकन उपन्यासकारों में जॉन स्टेनबेक का स्थान बहुत ऊँचा है। उसके इस उपन्यास को पाठकों और आलोचकों ने बेहद सराहा है।
Pagal/पागल
नोबल पुरस्कार विजेता लेखक अर्नेस्ट हेमिंग्वे की कहानियों में उनके घुमक्कड़ और खोजी जीवन के अत्यंत सजीव चित्र प्राप्त होते हैं। इनमें मनुष्य-जीवन का जो पहलू खींचा गया है वह अन्य किसी की कहानियों में नहीं मिलता। इसीलिए वे सारे संसार में समादृत हुई हैं और बड़े चाव से पढ़ी जाती हैं। यहाँ उनकी चुनी हुई कहानियों के अनुवाद किए गए हैं। वे निश्चय ही पाठकों का मन मोह लेंगे।
अनुवादक हैं सर्वश्री वीरेन्द्रकुमार गुप्त और रमेश वर्मा।
