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The Land of Lost Gods

A gripping thriller by the bestselling author Ahmet Umit, sold 500,000 copies in Turkey.

“That is why I shall begin in the place you thought you had forgotten. Those that forget shall pay the price for forgetting. Those that did not show due respect shall be rewarded with the severest of punishments: those that tore me from their hearts shall have their hearts torn out…”

In 1879, a grand monument of stunning statues was bought from Bergama in Anatolia (Türkiye) to Belgium. These idols from the temple in Pergamon, ancient Izmir in Türkiye, were the last relics of the complex Ottoman mythology. Until one day, all legends began to come alive…

A brilliant assassin, inspired by the Gods depicted in the reliefs of temples in Pergamon, a poet who writes epics in Zeus’ name in human blood on parchments. A mortal that despises mankind, wishing to become a God. And a child preparing to climb Olympus to confront his father. Are all at the center of a chaotic, adventures chase across Europe and the Mediterranean, threatening to uncover the veiled darkness of mankind, in the pursuit of their own truths, which could end the world as we know it.

As Yildiz Karasum, a Turkish detective, and her mysterious assistant, Tobias Becker, investigates the suspicious murders, they uncover secrets that could destroy the city that stubbornly clings on to its diversity without forgetting its past. And just as they seem to grasp the core of the missing and imperfect pieces of the puzzle, a new name is revealed…

And a truth, that is beyond the reach of any mortal justice.
Because when the Gods demand a sacrifice, there is always one to be chosen….

Anupma/अनुपमा

“यह काल की गति है या कर्मों का फल,” अनुपमा की माँ ने अपने पति कालाचार्य से कहा, “कि अनुपमा का अपहरण कर लिया गया है। अपहरण की योजना में रूपमती का हाथ स्पष्ट ही दिखता है। साथ ही उसके पीछे गर्द भिल्ल की शक्ति और रामभट्ट की कुटिल नीति भी अवश्य है।”
प्राचीन उज्जैन के व्यसनी नरेश गर्द भिल्ल ने प्रजापुत्री अनुपमा का अपहरण करा उसे अपने महल में डाल लिया, परिणामस्वरूप ऐसा भयंकर विस्फोट हुआ, जिससे उज्जैन नगरी की ईंट-से-ईंट बज उठी। फिर उदय हुआ उस पराक्रमी सम्राट विक्रमादित्य का जिसके नाम से आज तक विक्रम संवत चला आ रहा है। यह एक सशक्त घटना-प्रधान ऐतिहासिक उपन्यास है।

Chand Chhoota Man/चाँद छूता मन

अशेष था एक ऐसा पुरुष, जिसे घर-परिवार, दुनिया समाज से भी अधिक प्रिय था ‘देहवाद’। वह स्त्री को मात्र देह-सुख के लिए उपयोगी मानता था। स्त्री चाहे घर की निर्मल मना, निष्कपट निष्पाप सहधर्मिणी हो या बाहर की बदनाम स्त्रियाँ।
हिमानी थी एक ऐसी पत्नी, जिसने पति से प्यार, सम्मान और सहज व्यवहार कभी नहीं पाया। वह अपने ही घर में दबी-घुटी और परायों का-सा जीवन जीती रही।
आहुति थी एक कम-उम्र युवती, जिसे बहला-फुसलाकर विवाह के लिए बाध्य कि या और ले आया उस घर में, जहाँ एक आराध्य देवी पहले से मौजूद थी और निरंतर तिल-तिलकर गल रही थी।
आहुति ने देखा और होम दिया अपना सारा जीवन। अशेष ने जिस स्त्री को उसके अधिकारों से वंचित कर रखा था, उसी के उच्चासन पर उसे स्थापित करना चाहा, पर ऐसा नहीं होने दिया आहुति ने। उसने एक लंबी लड़ाई लड़ी और हिमानी को घर-बाहर सब जगह ऐसे शिखर पर पहुँचा दिया कि अशेष बौना लगने लगा और अंत में उसने समर्पण कर दिया अपनी पहली पत्नी के आगे।

Dafa Chaurasi/दफ़ा चौरासी

गोली खाने के लिए छाती ताने खड़े उस प्रेमी के चमकते हुए चेहरे और घुँघराले बालों की ओर गौर से देखता हुआ बलदेवा उपेक्षा से बोला, “गोलियाँ बहुत महँगी हैं आजकल।” पलटकर जाते हुए बलदेवा का कंधा थामकर चित्रकार ने कहा, “देख बलदेवा, अगर तू मुझे नहीं मारेगा तो मैं तुझे मार दूँगा। दोनों तरह से उसकी मुश्किल आसान होकर रहेगी। बोल, क्या कहता है?”
एक तरफ चित्रकार का प्रेम और त्याग! दूसरी तरफ डाकू बलदेवा की हिंसा और प्रतिशोध! और फिर इनके टकराव की यह अनोखी कहानी जिसे पंडित आनंद कुमार ने सर्वप्रथम फिल्म अनोखी रात के लिए लिखा और अब उसे उपन्यास के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। व्यक्ति के अंतर्मन को छूने वाला एक मार्मिक उपन्यास।

Durgesh Nandini/दुर्गेश नन्दिनी

दुर्गेश नन्दिनी बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित प्रथम बांग्ला उपन्यास है। सन 1865 के मार्च मास में यह उपन्यास प्रकाशित हुआ। दुर्गेश नन्दिनी बंकिमचन्द्र की चौबीस से लेकर 26 वर्ष के आयु में लिखित उपन्यास है। इस उपन्यास के प्रकाशित होने के बाद बांग्ला कथासाहित्य की धारा एक नए युग में प्रवेश कर गई। 16वीं शताब्दी के उड़ीसा को केंद्र में रखकर मुगलों और पठानों के आपसी संघर्ष की पृष्ठभूमि में यह उपन्यास रचित है। फिर भी इसे संपूर्ण रूप से एक ऐतिहासिक उपन्यास नहीं माना जाता, क्योंकिे इसमें काल्पनिकता का पुट है।

Gaddar/गद्दार

गद्दार की कथा कृश्न चन्दर के अनुभव की कथा है—तपे हुए, देखे हुए अनुभव की। देश के विभाजन की त्रासदी की इस निराली और एक साँस में पढ़ी जानेवाली कृति को पढ़ना एक अनूठा, दुर्लभ अनुभव ही नहीं वरन् एक ऐसे चिंतन का मूल है, जो देश-विभाजन की त्रासदी पर नए तरह से सोचने को विवश करती है और उस त्रासदी से उपजे ज्वलंत और अनसुलझे प्रश्नों से पाठक को बार-बार जूझने को विवश करती है।
फूलों की रंगो-बू से सराबोर रचना से अगर आँच भी आ रही हो तो मान लेना चाहिए कि कृश्न चन्दर वहीं पूरी तरह मौजूद हैं। यही इनकी कलम की ख़ास पहचान है यानी रोमानी तेवर में खालिस इंकलाबी बात। उनकी तमाम रचनाओं में जैसे एक अर्थपूर्ण व्यंग्य, दर्द और कराह छुपी हुई है, जो हमें अद्भुत रूप से अपनी दुर्बलता के ख़िलाफ़ खड़ा करने में समर्थ है। कारण, रचनात्मकता के साथ चलनेवाला जीवन-संघर्ष जिसे उन्होंने लहू की आग में तपाया है। वस्तुतः कृश्न चन्दर की रचनाएँ हमारे समय की गहन मानवीय, सामाजिक और सियासी सच्चाइयों की पर्याया्लय हैं। वे हर पल असलियत के साथ हैं। कहना न होगा कि इस कलम के जादूगर कृश्न चन्दर की तमाम रचनाओं को बड़े चाव के साथ पढ़ा और सहेजा जाएगा। मानवीय, सामाजिक और सियासी अंतर्द्वंद्वों की अनमोल और संग्रहणीय कृति।

Jagriti/जागृति

यह उपन्यास एक रोचक कथा के साथ-साथ एक ओर जहाँ भारतीय संस्कृति, परंपरा के गौरवमयी अतीत से परिचित कराता है, तो वहीं इसमें राजनीति के विसंगतिपूर्ण निर्णयों से भविष्य की सावधानी का संकेत भी मिलता है। एक बार में कहें तो जागृति गुरुदत्त का श्रेष्ठ उपन्यास है जिसमें दो जाट-परिवारों के संघर्ष और उसके परिणामस्वरूप स्त्रियों की करुण दशा का मार्मिक चित्रण हुआ है। गुरुदत्त के पाठक इस उपन्यास को एक बार पढ़ने के बाद कभी भूल नहीं पाएँगे।
अपने आप में यह उपन्यास अदभुत एवं इतिहास के अनोखे पन्नों को सामने रखने वाला है।

Kalame Rumi/कलामे रूमी

कलामे रूमी को फारसी भाषा से सीधा अनुवाद किया गया है।
अभय तिवारी ने रूमी नाम से फ़ारसी साहित्य के विद्वान सूफ़ी विचारक और संत मौलाना मुहम्मद जलालुद्दीन रूमी की प्रसिद्ध पुस्तक “मसनवी” का हिंदी अनुवाद किया है। मसनवी फ़ारसी साहित्य की अद्वितीय कृति है। इसमें संस्मरणों और रूपकों के ज़रिए ईश्वर और आस्था के मसलों पर विवेचन किया गया है। रूमी सिर्फ़ कवि नहीं है, वे सूफ़ी हैं, वे आशिक़ हैं, वे ज्ञानी हैं, विद्वान हैं और सबसे बढ़कर वे एक गुरु हैं। उनमें एक तरफ़ तो उस माशूक़ के हुस्न का नशा है, विसाल की आरज़ू व जुदाई का दर्द है, और दूसरी तरफ़ नैतिक और आध्यात्मिक ज्ञान की गहराईयों से निकाले हुए अनमोल मोती हैं। इसीलिए रूमी का साहित्य सारे संसार को सम्मोहित किए हुए है।

Zindagi Aur Tufan/ज़िंदगी और तूफ़ान

विचित्र संयोगों के तूफ़ानी भँवरों में फँसते-निकलते एक युवक तथा चार युवतियों की यह एक अनोखी ज़िंदगी की मार्मिक कहानी है।
महावीर अधिकारी के बहुचर्चित उपन्यास ‘तलाश’ पर यह पटकथा लिखी गई है। यह पटकथा स्कूल-कालेज के छात्राओं के लिए भी बहुत उपयोगी है, क्योंकि इसका लेखन इस प्रकार किया गया है कि पढ़ने वाले को एक ओर जहां भरपूर मनोरंजन का आभास होता है, वहीं इसकी कथा अपने ईर्द-गिर्द पात्रों पर घूमती ही नजर आती है और इससे भी बढ़कर फिल्म पटकथा लेखन के गुर भी इसमें मिलते हैं।

The School for Bad Girls

Something strange is happening in the heart of the British Empire.

Nineteenth-century Calcutta is abuzz with social reforms, especially with regard to womens’ rights and education. And in this time, Kadambini Ganguly dreams of going to university—and in the ultimate audacious hope—wants to become a doctor.

But for many people, the idea of girls studying is anathema. And a school full of unmarried girls and widows getting an education, in an environment where caste is disregarded and every student treated as an equal, leads to charges of immorality. And the battle to get the right to a college education is against overwhelming odds.

The fictionalised story of Kadambini, one of the first women graduates of the British Empire and the first woman to get a degree from an Indian medical college, is rivetingly told by Madhurima Vidyarthi, in a fascinating portrait of nineteenth century life, society and its arbitrary mores.

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